ऑफिस की खिड़की से, होने वाली सुबह देखता हूँ...! ऑफिस की खिड़की से, होने वाली सुबह देखता हूँ...!
ऐसी कोई भूूल, धूल धूसरित दिखा समाज का इक फूल। ऐसी कोई भूूल, धूल धूसरित दिखा समाज का इक फूल।
वक्त बदलने पे वक़्त भी तो बदलता है, पर एक नहीं बदलता ये जात आदमी के। वक्त बदलने पे वक़्त भी तो बदलता है, पर एक नहीं बदलता ये जात आदमी के।
आँखे निस्तेज डरी हुई सी भय थिरकन से भरी हुई सी खतरा हर पल लगा हुआ सा गले में अटकी जान हूँ। आँखे निस्तेज डरी हुई सी भय थिरकन से भरी हुई सी खतरा हर पल लगा हुआ सा गले में ...
उन सारे अधूरे सवालों का ज़िक्र मेरे ख़्वाबों में कर जाया करती है... उन सारे अधूरे सवालों का ज़िक्र मेरे ख़्वाबों में कर जाया करती है...
जिंदगी का खेल भी शतरंज की बिसाख पर है बिछा पड़ा जिंदगी का खेल भी शतरंज की बिसाख पर है बिछा पड़ा